Pustakalay Par Nibandh 250-300 Word me / पुस्तकालय पर निबंध 300 शब्द में
भूमिका– मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्ञान की प्राप्ति आवश्यक है। मस्तिष्क को बिना गतिशील बनाये ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यालय जाकर गुरु की शरण लेनी पड़ती है। इसी तरह ज्ञान अर्जित करने के लिए पुस्तकालय की सहायता लेनी पड़ती है। भारत में पुस्तकालयों की परम्परा प्राचीन काल से ही रही है। नालन्दा, तक्षशिला के पुस्तकालय विश्वभर में प्रसिद्ध थे। मुद्रणकला के साथ ही भारत में पुस्तकालयों की लोकप्रियता बढ़ती चली गई। दिल्ली में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी की सैकड़ों शाखाएँ हैं। इसके अलावा दिल्ली में एक नेशनल लाइब्रेरी भी है।
महत्त्व – ‘पुस्तकालय’ (पुस्तक आलय) केवल पुस्तक रखने के लिए घर (आलय) नहीं है, यह माँ सरस्वती की आराधना का पवित्र स्थल है। किसी भवन में आलमारियों में पुस्तकें सजाकर रख देने से ही भवन ‘पुस्तकालय’ की संज्ञा नहीं पा सकता। ‘पुस्तकालय’ में प्राण-संचार वहाँ पाठकों के नियमित अध्ययन करने से ही होता है। जिस पुस्तकालय में पाठक पढ़ने ही न जाएँ, वह पुस्तकालय नहीं, उसके (पुस्तकालय के) नाम पर एक निर्जीव भवनभर है।
उपयोगिता– पुस्तकें मनुष्य की मित्र होती हैं। एक ओर जहाँ वे हमारा मनोरंजन करती हैं वहीं वह हमारा ज्ञान भी बढ़ाती है। हमें सभ्यता की जानकारी भी पुस्तकों से ही प्राप्त होती है। पुस्तकें ही हमें प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान काल के विचारों से अवगत कराती है। कोई भी व्यक्ति एक सीमा तक ही पुस्तक खरीद सकता है। सभी प्रकाशित पुस्तकें खरीदना सबके बस की बात नहीं है। इसलिए पुस्तकालयों की स्थापना की गई। यहाँ देशी-विदेशी हर तरह की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं.
हानि– पुस्तकालय में अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग किताबें चोरी या कलम चोरी करते हैं, जो बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं होती है। कहीं लोग तो पुस्तकालय के पुस्तकों को भी फाड़ते हैं, ऐसे में वो ना सिर्फ दूसरों का और देश का नुकसान कर रहे हैं बल्कि खुद का भी नुकसान कर रहे हैं। हमें पुस्तकालय में जाकर चोरी, किताबें फाड़ना जैसे काम नहीं करना चाहिए। जब भी हम पुस्तकालय में जाते हैं, तो हमें अनुशासन का पालन करना चाहिए।
निष्कर्ष-पुस्तकालयों को जहाँ राष्ट्र के सांस्कृतिक गौरव से परिचय प्राप्त करने का केंद्र बनाया जाना चाहिए, वहाँ उनके माध्यम से ही राष्ट्रीय भावना का प्रचार-प्रसार भी होते रहना चाहिए। ऐसा होने में ही पुस्तकालयों की महती सार्थकता है। समाज की बुजुर्ग पीढ़ी का यह दायित्व बनता है कि वह युवापीढ़ी को अध्ययन के प्रति जागरूक करे और उसे पुस्तकालयों से लाभ उठाने के लिए प्रेरित करें।
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